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कविता

क्या नहीं है इस आँगन में

प्रताप सोमवंशी


 

चिड़ियों ने जाने कैसे कहाँ खबर फैलाई
तोता, कोयल, बुलबुल, फाख्ता, कबूतर और गौरैया से भर गया था
आँगन के अमरूद का पेड़
शुरू-शुरू में दो चार चिड़ियाँ ही देखने आई थीं आँगन
गिनती के दिनों में ही इतना घुल-मिल गई हैं कि
दाना बिखेरने में जरा सी देर हो जाए तो
चहचहाहट के शोर से भर जाता है आँगन
दाना पाते ही संस्कारी नजर आती हैं सारी चिड़ियाँ
खाते समय बोला नहीं जाता
मोर आँगन में इत्मीनान से टहलता है
उसे खुद खाने से ज्यादा
चिड़ियों को चुगते हुए देखना ज्यादा अच्छा लगता है
शैतान कौए सारी रोटियाँ अकेले लेकर न भाग जाएँ
रोटियों पर पानी डाल देता है आँगन
गली हुई रोटियाँ सबके हिस्से में बराबर बँट जाती हैं
गिरगिट को यहाँ रंग बदलने के कलंक से नहीं पहचाना जाता
अहसास की उँगलियाँ अगर विश्वास के रास्ते से आएँ
पीठ तक सहलाने की इजाजत देता है गिरगिट
गोह आँगन में धूप सेंकने आती है अक्सर
चींटे-चींटियाँ इधर-उधर से मिट्टी लाते
और छोटे-छोटे पहाड़ बना-बनाकर खाते-खेलते हैं
आँगन के ऊपर से गुजरते बिजली के तार
चीलों के लिए सबसे पसंदीदा जगह है
जगह-जगह नाचती बहुरंगी तितलियाँ नहीं होती जब
आँगन बेचैन नजर आता है तब-तब
कुत्ते दरवाजे की साँकल उतरने का मतलब जानते हैं
उनके लिए खाने को कुछ बाहर आने वाला है
साँकल चढ़ना ड्यूटी पर मुस्तैद होने का साइरन है
विद्वान आँगन की तीन व्याख्याएँ प्रस्तुत कर रहे हैं
एक - आँगन जंगल में बदल गया है
दो - जंगल में एक आँगन है
तीन - आँगन इसी जंगल जैसा होना चाहिए।


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